Friday, December 5, 2008

वो भी थी उस गरीबी का कभी हिस्सा


मैं नेशनल न्यूज़ चैनल के एक प्रोग्राम् आँखों देखी में बतौर सवान्दाता काम करता हु। ऑफिस से निकलने के बाद मैं शिवाजी ब्रिज(सीपी) से लोकल ट्रेन अपने घर जाने के लिए पकड़ता हु। उस दिन शुकरवार था, काम ज्यादा था नही तो मैं जल्दी ही घर के लिए निकल गया....ट्रेन पाँच बजकर चालीस मिनट की थी.......मैं जब रेलवे स्टेशन पंहुचा तो उस वक्त केवल चार बजकर तीस मिनट हुए थे .....तो मैंने इधर उधर घुमाने की सोचा और मैं चल दिया.....लेकिन दुसरे ही मिनट मैंने सोचा की रेलवे स्टेशन के प्लेटफोर्म पर ही बाकी टाइम बिताया जाए.......मैं प्लेटफोर्म पर पंहुचा सभी अनजान चेहेरों के बीच मैं एक ऐसा चेहरा तलाश कर रहा था जो मुझे जानता हो क्यूंकि उसी ट्रेन से काफ़ी लोग मेरे शहर पहुचते है.......लेकिन मुझे वो चेहरा दिखा नही...खैर मैं प्लेटफोर्म एक कोने से दुसरे कोने के चक्कर काटने लगा .......टाइम जैसे कट ही नही रहा था....आती जाती ट्रेनों को देख रहा था ....कभी कोई वातानुकूलित डिब्बा आता तो अपने चेहरे को उसमे देखने लगता.....टाइम धीरे-धीरे कटने लगा......प्लेटफोर्म पर भीड़ बदने लगी........अभी मैं मुंबई में आतंकवादियों दुवारा हुई घटना के बारें में और प्लेटफोर्म पर न क बराबर दिखने वाली सुरक्षा क बारें में सोच ही रहा था.....अचानक मेरे कानो में किसी के बहुत बहुत तेज़ तेज़ बात करने की आवाज़ आई......मैंने उस तरफ़ नज़र घुमाई तो वंहा कुछ औरतो का समूह बना हुआ था जो आपस में बात कर रही थी......लेकिन दुसरे ही पल उसमे से एक अधेड़ उम्र की औरत कुछ बड़ बढाते हुए पानी लेने आई............... पहले तो वो मुझे उन्ही औरतो में से एक लगी लेकिन जब वो अकेले में भी कुछ बोलती रही तो मुझे समझ आया की ये उनमे से नही है........वो कुछ बोल रही थी लेकिन मैं काफी दूर खडा था इसलिए समझ नही आ रहा था......फ़िर मैं धीरे-धीरे उससे नज़र बचाते हुए उसके पास गया लेकिन उससे थोड़ा दूर ही खड़ा रहा की ये सोच कर कंही मानसिक रूप से बीमार ये औरत मेरे पीछे न पड़ जाए......वो कुछ कह रही थी की अमीरों का कोई ईमान नही होता अपना पेट भरना जानते है बस.......चाहे फ़िर गरीब की खाल ही क्यों न बेचनी पड़े......उसकी बातों से ऐसा लग रहा था....जैसे किसी घटना से इसके दिमाग पर गहरा असर पड़ा है..........मैं चाय वाले के पास अपने कोहनी की टेक लगाकर खड़ा हो गया......उसने पानी पिया और फ़िर वो चाय वाले क पास आकर उससे चाय माँगने लगी.........वो काफी भूखी भी लग रही थी.........चाय वाले ने उसको फटकार कर वंहा से भगाना चाहा.......वो वंहा से जाने लगी लेकिन मुझे लगा की उसको भूख लगी है तो मैंने चाय वाले को कहा की उसको चाय दे दे........वो वापिस आई और चाय पीने लगी मैंने उसको एक बिस्कूट भी दिला दिया .......वो वही बैठकर चाय पीने लगी मैंने सोचा कंही ये और कुछ न माँगने लगे इसलिए मैंने वंहा से चल दिया। .....लेकिन इससे पहले की मैं कुछ आगे बढता वो बोली......बेटा कभी अमीर मत बनना......अमीर के पास पैसा तो होता है लेकिन दिल नही.......फ़िर अचानक से वो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी को बुरा भला बोलने लगी........वो कहने लगी राजीव गाँधी की मौत पर उसको अफ़सोस नही हुआ वो तो हस रही थी......आज राजनीति में बहुत बड़ी हो गई है उसके नाम का इस्तेमाल करती है.....अब उसको याद नही आती.....लेकिन मैं बेटा रोई थी अपने पति की मौत पर .........दिल्ली सरकार ने हमारे हाथ काट दिए.....हरी हरी बस चला दी.....मेट्रो चला दी अचानक ही वो दिल्ली सरकार पर भड़क उठी......मुझे कुछ अजीब लगा मुझे लगा शायद इसके पति के मौत का इसको सदमा लगा है......मेरे कदम वही रुक गए आगे की बात जानने के लिए......मैं अभी उस औरत से बात करने के लिए झुका ही था.......की सामने से मेरे सामने इऍमयु (लोकल ट्रेन ) आ गई और वो औरत बड़ी तेज़ी से उठकर उसमे चढ़ गई..........जैसे ही वो उसमे चढ़ गई...........इस बार वो रो रही थी.........गेट पर ही बैठी थी.....ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ चल दी......और मैं खड़ा खड़ा उसका रोता हुआ चेहरा देख रहा था.....बाकी वंहा खड़े कुछ बच्चे जिनके कपड़े काले पड़ चुके थे.........शायद वो वही रेलवे स्टेशन पर रहते थे..........उसको पागल पागल कहकर चिडा रहे थे............लेकिन वो भूल गए थे की वो भी थी उस गरीबी का ही हिस्सा ।

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